शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

विज्ञान और दर्शन में समानता



                                   
बहुत सी बातों में दर्शन और विज्ञान दोनों में बहुत  समानता है . सिर्फ तर्क रखने के ढंग अलग अलग हैं . इस लेख में मैं ऐसे ही कुछ विषयों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ . वैदिक दर्शन के अनुसार संसार में हर वस्तु पञ्च महाभूत यानि कि पांच तत्वों से ही बनी है . और वो पांच तत्त्व हैं - अग्नि ,वायु , पृथ्वी ,आकाश और जल ! इसका अर्थ ये है की प्रत्येक वस्तु अपना रूप तो बदल सकती है लेकिन समाप्त नहीं हो सकती क्योंकि अंत में हर वस्तु का स्वरुप इन पांच तत्वों के रूप में विद्यमान रहने वाला है . उदहारण के लिए जब एक मृतक शरीर को जलाया जाता है तो हम देखतें हैं कि उसकी अस्थियाँ मिटटी बन कर पृथ्वी में समा जाती हैं ; शरीर में स्थित जल वाष्प के रूप में आकाश  में चला जाता है  ; और भिन्न भिन्न प्रकार के रसायन पैदा होतें हैं जो किसी न किसी रूप में इन्ही पांच तत्वों में विलीन हो जाते हैं . यही बात विश्व की हर वस्तु के साथ लागू होती है - पशु पक्षी ,जलचर नभचर , जड़ और चेतन - हर वस्तु का रूप बदलता रहता है लेकिन कुछ भी पूरी तरह मिटता नहीं . आइये इन पांच तत्वों की चर्चा जरा विस्तार से करें -

१. पृथ्वी - पृथ्वी शब्द का प्रयोजन इस परिभाषा में सिर्फ उस पृथ्वी का नहीं है, जिस पर हम निवास करतें हैं . पृथ्वी शब्द उन तमाम ग्रहों, उपग्रहों ,नक्षत्रों, उल्काओं और ठोस भूमि -पिंडों का नाम है जो पूरे ब्रह्माण्ड में हमारी पृथ्वी की तरह स्थित हैं. पृथ्वी का अर्थ वो सब कुछ है जिनसे पृथ्वी बनी है - मिटटी , पहाड़, खनिज , धातु , वनस्पति , हर वो वस्तु जो ठोस रूप में विद्यमान है .

२. जल - यहाँ जल उन सारे जल स्त्रोतों का नाम है जिनमे तरल रूप में जल अपने शुद्ध रूप या मिश्रित रूप में होता है . नदी, सागर, बावड़ी , हिम, वर्षा आदि अलग अलग स्त्रोत्र हैं जल के ; लेकिन फलों के रस में , मनुष्य और जानवरों के रक्त में , वनस्पति में , कीट पतंगों के शरीर में भी जल किसी न किसी रूप में विद्यमान है .

३. अग्नि - अग्नि शब्द भी बहुत व्यापक है . अग्नि का एक रूप है वो अग्नि जो हम यज्ञ के समय देखते हैं . वास्तव में हम अग्नि को महसूस करतें हैं - उष्मा के रूप में और प्रकाश के रूप में . सूर्य की किरणों में भी ये गुण है . ऊष्मा और प्रकाश - ये दोनों उदहारण है ऊर्जा यानि energy Energy के . ऊष्मा की उर्जा से बड़े बड़े थर्मल पावर प्लांट चलते हैं , जो हमें देते है - बिजली .बिजली के प्रभाव से चलती हैं मोटर और पम्प जो हमें शक्तिशाली यांत्रिक कार्य करने में मदद करते हैं . इस प्रकार हम देखतें हैं कि जितनी किस्म की ऊर्जाएं हैं वो सभी एक दूसरे  का बदला हुआ स्वरुप है . अग्नि का अर्थ इस परिभाषा में संपूर्ण ऊर्जा है . ऊर्जा जो किसी भी रूप में है जैसे - विद्युत , ध्वनि ,प्रकाश, चुम्बक , रसायन , यांत्रिकी , आणविक , ऊष्मा  या अन्य सभी जिनकी खोज विज्ञान ने की है या नहीं . 

४. वायु - सामान्य भाषा में हम वायु कहतें हैं जो हमारे भूमंडल को हर तरफ से घेरे हुए एक वातावरण है उसको ; जिसमे हम सब श्वास लेते हैं . शरीर से उत्पन्न होने वाली गैसों को भी अपान वायु कहतें हैं. विस्तृत रूप में वायु शब्द है उन सभी पदार्थों का जो गैस के रूप में विद्यमान है . जितनी किस्म की गैसें है - आक्सीजन , नायट्रोजन , कार्बन डाई आक्साइड , हिलिअम और हजारों प्रकार की जानी अनजानी गैसें - सभी का नाम है वायु .

५. आकाश - आकाश नाम है शून्य का. जिस जगह कुछ भी नहीं है, वहां है आकाश . शून्य जिसे वैज्ञानिक भाषा में स्पेस (Space) कहतें हैं , वो भी अपने अन्दर कुछ विशेषताएं रखता है . सबसे बड़ी विशेषता है की सारे गृह, उपग्रह, नक्षत्र , सूर्य , चन्द्रमा , पृथ्वी आदि इसमें स्थापित हैं .

अब अगर हम इन पाँचों तत्वों का जोड़ लगायें तो हम पायेंगे की हमने संपूर्ण ब्रह्माण्ड का जोड़ लगा दिया . सभी ठोस पदार्थ , सभी तरल पदार्थ , सभी गैसीय पदार्थ , सभी ऊर्जाएं और इन सब को धारण करने वाला संपूर्ण शून्य - यही तो है ईश्वर द्वारा रचित ब्रह्माण्ड . आइये दर्शन के इस महान सिद्धांत की तुलना करें कुछ विज्ञान की खोजों से !   

विज्ञान में दो सिद्धांत हैं जो इस प्रकार हैं -

1.    Law of conservation of Mass : In any closed system subjected to no external forces, the mass is constant irrespective of its changes in form; the principle that matter cannot be created or destroyed.

इस नियम के अनुसार विश्व में कोई भी पदार्थ न उत्पन्न  किया  जा  सकता  है  न  ही  नष्ट ; मात्र पदार्थ का स्वरुप ही बदल सकता है . इस बात को पूरी तरह दर्शन के चिंतन में लाने के लिए एक वाक्यांश  का प्रयोग हुआ है - In any closed system subjected to no external forces, इसका अर्थ है कि यह नियम लागू होता है एक ऐसे सीमाक्षेत्र में जिसमे बाहर कुछ भी जाने या बाहर से कुछ भी आने कि सम्भावना न हो . ऐसी सीमा संभव है जब हम पूरे ईश्वरकृत ब्रह्माण्ड को ही सीमा मान लें . अब अर्थ स्पष्ट है कि पूरे ब्रह्माण्ड में हर वस्तु का स्वरुप बदल सकता है लेकिन कोई भी वस्तु न तो नष्ट हो सकती है और न ही उत्पन्न . पूरे ब्रह्माण्ड का अर्थ ही है पाँचों तत्त्व .

2. The total amount of energy in any isolated system remains constant, and cannot be created or destroyed, although it may change forms.

विज्ञान के इस नियम के अनुसार एक बंद सीमाक्षेत्र में ऊर्जा की मात्रा अक्षुण (Constant) रहती है ; ऊर्जा को न तो उत्पन्न और न ही नष्ट किया जा सकता है . ऊर्जाका सिर्फ स्वरुप ही बदलता है . उदहारण के लिए एक बैटरी जिसमे कुछ मात्रा में रसायन भरा होता है , जब तारों से जोड़ कर उपयोग में ली जाती है तो रसायन ऊर्जा बदल जाती है विधुतीय ऊर्जा में . ये विधुतीय ऊर्जा काम आती है बड़े बड़े यंत्रों को चलाने के लिए जो  यांत्रिकी ऊर्जा से चलते हैं . उसी तरह जब हम एक माइक में कुछ बोलते हैं तो माइक से जुडी विधुतीय ऊर्जा हमारी आवाज को सैकड़ो गुना बढ़ा कर ध्वनि ऊर्जा में बदल देती है .

 विज्ञान के इन दोनों नियमों को अगर एक साथ जोड़ दिया जाए तो हमें प्राप्त होता है दर्शन का वही सूत्र - जिसके अनुसार विश्व के हर पदार्थ का आधार है - पञ्च तत्त्व जो किसी न किसी रूप में हमेशा विद्यमान रहतें हैं , क्योंकि उनकी उत्पति और विनाश नहीं होता; मात्र रूप परिवर्तन होता है .

जीवन के कुछ विषय ऐसे हैं जो आज भी विज्ञान की पहुँच के बाहर हैं - जैसे की जीवन मृत्यु का रहस्य . विज्ञान का क्षेत्र समाप्त हो जाता है व्यक्ति की मृत्यु  के साथ. मृतक शरीर के बारे में विज्ञान सारी जानकारी दे सकता है लेकिन उस जीव के बारे में नहीं जो की शरीर को त्याग कर कहीं विलीन हो जाता है . दर्शन का मानना है की जीव यानि आत्मा कभी नहीं मरता , वो एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर में प्रवेश करता है . दूसरे शरीर का स्वरुप किसी भी योनि  में हो सकता है- जैसे कुत्ता , बिल्ली, गाय , कीट , पतंग  आदि. अध्यात्म  का कहना है, उत्तम कर्म कर के आत्मा जीवन मरण के बंधन से छूट  जाता है और मोक्ष को प्राप्त होता है . मोक्ष की अवस्था में भी आत्मा समाप्त नहीं होता और आनंद की अवस्था में विद्यमान रहता है . दर्शन की इस परिकल्पना से एक और दृढ नियम प्रतिपादित होता है , जो इस प्रकार है

 Law Of Conservation Of Soul

संपूर्ण ब्रह्माण्ड में , जीवों या जीवात्माओं की संख्या स्थाई रूप से अक्षुण है, क्योंकि जीवात्मा न उत्पन्न होता है न ही नष्ट ; जो न घटती  है न बढती है. जीवात्मा मात्र अपना स्थान बदलता है , लेकिन उसका अस्तित्व लोक लोकान्तरों में, विभिन्न  योनिओं में और मोक्ष की स्थिति  में विद्यमान रहता है .
आज के समय में विज्ञान इस नियम पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है ; लेकिन कालांतर में शायद विज्ञान इस नियम की पुष्टि का भी कोई रास्ता निकालेगा .          

1 टिप्पणी:

  1. प्रकृति मे उपस्थित वस्तुओं के क्रमबध्द अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने को ही विज्ञान कहते हैं। या किसी भी वस्तु के बारे मे विस्तृत ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं । इसकी तीन मुख्य शाखाएँ हैं : भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान

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