जब से सृष्टि बनी है , मानव निरंतर देखता है- जन्म और मृत्यु की घटनाओं को . जन्म से मृत्यु के बीच का काल , जिसे हम जीवन कहते हैं - वो मनुष्य की आँखों के सामने होता है . हम देख पाते हैं कि कैसे एक शिशु अपनी माता के गर्भ में एक भ्रूण के रूप में जन्म लेता है , कैसे अपने पूरे विकास के बाद माता के गर्भ से बाहर आता है , कैसे निरंतर सांसे लेता है ; भोजन करता है , जिससे उसका शारीरिक विकास होता रहता है . आयु के अलग अलग आयामों को पार करता हुआ वो शिशु पहले एक युवक , फिर एक प्रौढ़ और फिर एक वृद्ध में बदल जाता है . और फिर एक समय आता है जब कि उसका वृद्ध शरीर निस्तेज हो जाता है ; सांसों की निरंतर चलने वाली धोंकनी बंद पड़ जाती है ; और वो व्यक्ति एक शव के रूप में परिवर्तित हो जाता है . इस प्रक्रिया को हम मृत्यु कहते हैं . ये भी हम देखते हैं कि ये मृत्यु असमय भी आ सकती है . मनुष्य किसी बीमारी से , किसी दुर्घटना से या किसी प्राकृतिक आपदा का शिकार होकर असमय मृत्यु को प्राप्त करता है .
इस मृत्यु के बाद क्या कुछ होता है , उसे हम या कोई भी जान नहीं सकता है . अलग अलग धर्मों ने किसी व्यक्ति के साथ मृत्यु के बाद होने वाली संभावनाओं को अपने अपने दर्शन के अनुसार मान रखा है . आर्य समाज कर्म फल के सिद्धांत को मानते हुए, ये प्रतिपादित करता है कि मनुष्य की मृत्यु के पश्चात् उसका आत्मा अपने मनुष्य जन्म के किये हुए कर्मों की गुणवत्ता के अनुसार इश्वर की सत्ता से अपने कर्मों का फल पाता है . उसके कर्म ये निर्धारित करते हैं कि उसे फिर एक बार मनुष्य योनि में जन्म मिलेगा, जिससे वो फिर एक बार कर्मक्षेत्र में उतर के अपने मानव जीवन को अर्थपूर्ण बना सके ; या फिर उसे अपने कर्मों के फलस्वरूप किसी अन्य प्राणी के रूप में जन्म लेकर अपने कर्मों का भुगतान करना पड़ेगा . उसे पृथ्वी पर ही जन्म मिलेगा या किसी दूसरे ऐसे ग्रह पर जहाँ ईश्वर ने जीवन की व्यवस्था कर रखी हो . और यदि जीवात्मा ने मनुष्य जीवन में अत्यधिक उत्तम कर्म किये हों, तो संभवतः वह ईश्वर की व्यवस्था के अनुसार मोक्ष को प्राप्त करेगा . हमारे सारे सिद्धांतों का आधार वेदों में निहित ज्ञान है .
दुनिया के सभी धर्मों में मृत्यु के उपरांत होने वाली स्थितयों पर विचार हैं . वास्तविकता ये है कि किसी भी दर्शन के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण संभव नहीं है . इसका कारण भी बहुत सरल है , मृत्यु के बाद जीवात्मा का अपने मृत शरीर और समाज से कोई सीधा सम्बन्ध रह नहीं जाता . जिस जगह जाकर जीवात्मा पुनः अपने पुराने परिवेश के संपर्क में रह नहीं पाता तो उसके लिए ये संभव नहीं कि जीवात्मा अपने छूटे हुए शरीर या समाज को कोई सूचना दे पाए .
जिस तरह दर्शन शास्त्र निरंतर मृत्यु के बाद होने वाली सम्भावओं को जानने के लिए प्रयत्नशील रहता है उसी प्रकार आधुनिक विज्ञान भी निरंतर इस विषय पर शोध करता रहता है . इस लेख में मैं ऐसे ही एक शोध कि चर्चा करूंगा .
विश्व के डॉक्टरों के लिए मृत्यु के बाद का अनुभव एक अनुसन्धान का विषय बना हुआ है , जिसे मेडिकल भाषा में कहते हैं NDE (Near Death Experience) जिसका अर्थ है , मृत्यु का अनुभव ! विश्व में बहुत से डॉक्टरों ने इस विषय पर अपने अपने तरीके से शोध करने का प्रयास किया . पाठक सोचेंगे कि जिस क्षेत्र में मनुष्य की पहुँच ही नहीं है- उस क्षेत्र पर शोध कैसा ! आइये थोडा खुलासा करें .
हम सब जानते हैं कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तब उसका ह्रदय काम करना बंद कर देता है . उसके साथ साथ उसकी श्वास , नाडी स्पंदन आदि सब कुछ विराम पर आ जाता है . अगर वो व्यक्ति उस समय किसी ICU (Intensive Care Unit) - यानि कि हस्पताल के प्राणरक्षक विभाग में होता है , तो देखा जाता है कि उस व्यक्ति की निरंतर गतिशील सांस की लहरों के सामान रेखाएं उससे जुड़े मॉनिटर के परदे पर अचानक निःस्पंद सी सरल रेखा का रूप ले लेती है . जिसे देख कर वहां मौजूद डॉक्टर और नर्सें ये समझ जाती हैं कि व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है .
फिर भी डॉक्टर अपना हौसला नहीं छोड़ते और कई ऐसे उपचार करते हैं जिसे मेडिकल भाषा में Resuscitation ( पुनर्जीवन प्रयास ) कहते हैं . इन उपचारों में मुख्य हैं मृतक के मुख या नाक में किसी दूसरे द्वारा मुख लगाकर वेग से साँसे फूंकना , मृतक के ह्रदय को जोर जोर से दबाना आदि. विश्व के डॉक्टरों के लिए मृत्यु के बाद का अनुभव एक अनुसन्धान का विषय बना हुआ है, जिसे मेडिकल भाषा में कहते हैं NDE (Near
Death Experience) जिसका अर्थ है , मृत्यु का अनुभव ! विश्व में बहुत से डॉक्टरों ने इस विषय पर अपने अपने तरीके से शोध करने का प्रयास किया .
इसका अर्थ ये हुआ कि ऐसे व्यक्ति कुछ समय के लिए मृत्यु को प्राप्त हो जातें हैं, लेकिन फिर वापस अपने जीवन में लौट आते हैं . आइये मृत्यु के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तनों की चर्चा करें . जब हम सांस लेते हैं, तो हमारे शरीर के अन्दर ऑक्सिजन का प्रवेश होता है . हमारे फेफड़ों के माध्यम से ये ओक्सिजन हमारे रक्त में घुल जाती है .ये रक्त ह्रदय से गुजरता है . ऑक्सिजन के कारण हमारा ह्रदय एक द्रव को धकेलने वाले पम्प की तरह काम करता है . रक्त में घुले ऑक्सिजन के कारण हमारे मष्तिष्क में स्थित लाखों सेल जीवित रहते हैं और पूरा स्नायु मंडल अपना काम करता है .
जब किसी व्यक्ति को ह्रदय गति का अवरोध (Cardiac Arrest
) होता है, तो ह्रदय का स्पंदन बंद हो जाता है . इसका सबसे घातक परिणाम ये होता है कि मष्तिष्क के स्नायु मंडल में ऑक्सिजन की पहुँच बंद हो जाती है . ये व्यवधान कुछ उसी प्रकार का होता है - जैसे की किसी सुनामी का किसी जीवंत गतिशील शहर पर अचानक प्रहार . क्षणों में सब कुछ तहस नहस हो जाता है . बीस सेकेण्ड के अन्दर मष्तिष्क के अन्दर मौजूद ऑक्सिजन समाप्त हो जाता है और मनुष्य की चेतना चली जाती है . ऑक्सिजन समाप्त होने के पश्चात् मष्तिष्क के सेल अपने लिए ऊर्जा ढूँढने की कोशिश करते हैं - कुछ ऐसे सेलों से जिनमे ऊर्जा भरी होती है .लेकिन ये भंडार भी बहुत जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं . धीरे धीरे मष्तिष्क के सेल मरने लगते हैं . अगले १५ से २० मिनट वो समय होता है जिसके अन्दर अगर रक्त का संचार पुनः शुरू कर दिया जाए तो पुनः चेतना आ सकती है . ह्रदय गति बंद होने के कारन मृत्यु के सभी लक्षण होने से
लेकर पुनः ह्रदय गति आने तक का काल चिकित्सा विज्ञान में क्लिनिकल डेथ ( परिभाषित मृत्यु ) कहलाता है . इस काल के इस तरफ जहाँ पुनर्जीवन है तो उस तरह है स्थायी मृत्यु .
इंग्लैंड के एक विशेषज्ञ चिकित्सक डॉक्टर सैम परनिया ने एक शोध किया - ऐसे लोगों पर जो अपनी मृत्यु के द्वार के अन्दर जाकर लौट आये . डोक्टर परनिया का शोध का विषय था , कि क्या इस संक्षिप्त मृत्यु काल की कोई भी अनुभूति ऐसे व्यक्तियों को याद रहती है . डॉक्टर परनिया कहते हैं कि इस शरीर में स्थित मष्तिष्क के आधार पर कोई स्मृति रहने का प्रश्न ही नहीं होता, क्योंकि मष्तिष्क के सभी सेल अपना अपना काम करना बंद देते हैं , इसलिए मष्तिष्क द्वारा किसी भी प्रकार अपनी मृत्यु के काल की स्मृति को संजो कर रखना असंभव है .
डॉक्टर परनिया की शोध ने ये बताया की इस तरह पुनर्जीवन प्राप्त करने वाले लोगों में से अलग अलग प्रयोगों में ये पाया गया की ६ से १० प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिन्होंने अपने इस मृत्यु के अनुभव का उल्लेख किया . उन्होंने अपनी शोध पर स्वयं प्रश्न खड़े किये और उनका उत्तर भी ढूँढा . उन्होंने चार संभावनाओं पर विचार किया -
१. संभवतः मनुष्य अपने ह्रदय गति के अवरोध के पहले की स्थिति का वर्णन कर रहा हो , क्योंकि उसे शायद पता ही न चला हो कि कहाँ जीवन समाप्त हुआ और मृत्यु शुरू हुई . लेकिन उनके अपने इस प्रश्न का उत्तर थे वो लोग जिन्होंने ऐसी ऐसी बातें बताई जो कि ओपरेशन थियेटर में उन्हें पुनर्जीवन देने के दौरान घटित हुई थी .
२. संभवतः हमारी मष्तिष्क की गतिविधि नापने की क्षमता के बाहर कोई क्षमता रही हो, जिसके कारण ऐसे व्यक्ति उन घटनाओं को जान पाए हों . इस सम्भावना को भी उन्होंने नकार दिया , क्योंकि स्नायुमंडल से किसी प्रकार की विद्युत् नहीं बन रही थी , और इसके नीचे के स्तर पर मष्तिस्क के लिए कुछ भी देखना, समझना या याद रखना संभव ही नहीं है .
३. उन्होंने एक और सम्भावना पर विचार किया कि संभवतः ऐसी घटनाओं को याद रखने के लिए मष्तिष्क के अलावा कोई दूसरा ही अंग हो .
४. और उन्होंने एक और सम्भावना पर भी विचार किया कि मष्तिष्क के निष्क्रिय हो जाने पर भी शायद किसी प्रकार की चेतना बची रहती हो .
बहरहाल डॉक्टर सैम परनिया की शोध पर संदेह करने की गुंजाईश इसलिए नहीं है , कि उनका शोध किसी दार्शनिक सिद्धांत पर आधारित न होकर पूरी तरह चिकित्सा विज्ञान पर आधारित था . वो किसी धर्म या धर्मगुरु के लिए ये शोध नहीं कर रहे थे, बल्कि मानव मात्र के कल्याण को केंद्र में रख कर रहे थे . उनकी शोध के आधार पर जो अनुभव सामने आये उनमे से कुछ इस प्रकार थे -
१. अधिकतर लोगों ने अपने अनुभव में बताया कि इस संक्षिप्त मृत्यु के दौरान वो एक ऐसी गुफा से गुजर रहे थे जिसमे उनके आसपास बहुत चमकदार रौशनी थी . ये रौशनी बहुत ही आनंददायक थी .कष्ट या दर्द की कोई अनुभूति लेश मात्र भी नहीं थी .
२. अधिकतर लोगों ने बताया कि जिस समय ओपरेशन कक्ष में उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश में डोक्टर और नर्सें लगे थे , वो स्वयं उस सारी घटना को कहीं छत के कोण से देख पा रहे थे . एक महिला ने तो यहाँ तक बताया कि जब
बहरहाल डोक्टर सैम परनिया की शोध पर संदेह करने की गुंजाईश इसलिए नहीं है , कि उनका शोध किसी दार्शनिक सिद्धांत पर आधारित न होकर पूरी तरह चिकत्सा विज्ञान पर आधारित था . वो किसी धर्म या धर्मगुरु के लिए ये शोध नहीं कर रहे थे, बल्कि मानव मात्र के कल्याण को केंद्र में रख कर रहे थे . उनकी शोध के आधार पर जो अनुभव सामने आये उनमे से कुछ इस प्रकार थे -
१. अधिकतर लोगों ने अपने अनुभव में बताया कि इस संक्षिप्त मृत्यु के दौरान वो एक ऐसी गुफा से गुजर रहे थे जिसमे उनके आसपास बहुत चमकदार रौशनी थी . ये रौशनी बहुत ही आनंददायक थी .कष्ट या दर्द की कोई अनुभूति लेश मात्र भी नहीं थी .
२. अधिकतर लोगों ने बताया कि जिस समय ओपरेशन कक्ष में उन्हें पुनर्जीवित करने की कोशिश में डोक्टर और नर्सें लगे थे , वो स्वयं उस सारी घटना को कहीं छत के कोण से देख पा रहे थे . एक महिला ने तो यहाँ तक बताया कि जब डॉक्टर पूरे जोर से उसे पुनर्जीवित करने की कोशिश में थे, तब उनका पैर पलंग के नीचे मौजूद एक बाल्टी से टकरा गया और बाल्टी पास ही मौजूद एक चल- टेबल से टकरा गयी , और सारे औजार नीचे गिर गए . डॉक्टर परनिया के अनुसार इस महत्वपूर्ण घटना को बताना एक महत्व पूर्ण बात है . यानि कि अपने शरीर से अलग एक सत्ता होने का अनुभव सभी ने किया .
३. बहुत से लोगों ने बताया कि उन्हें अपने दिवंगत परिवार जनों के दर्शन और साक्षात्कार हुए .
४. करीब करीब सभी ने एक बात बताई कि उन्हें इस स्थिति में किसी प्रकार के भय का अनुभव नहीं हुआ बल्कि एक अलग ही प्रकार के उत्तम आनंद का अनुभव हुआ .
५. डोक्टर परनिया की शोध का अंतिम हिस्सा ऐसे पुनर्जीवन प्राप्त व्यक्तियों के बाद के जीवन पर था . उनका कहना है कि एक अभूतपूर्व परिवर्तन ऐसे लोगों के जीवन में आया जो कि उन्हें जीवन की बुराइयों का त्याग करके अच्छाइयों की तरफ ले जा रहा था .
ऐसी बातें सुनने में विचित्र लगती है . शायद इसे किसी नए अन्धविश्वास का नाम
भी दे दिया जाए . एक आम भारतीय की स्वाभाविक प्रतिक्रिया शायद ये होगी की ये सब कुछ मनगढंत है . उसके मन में कुछ ऐसे सवाल उठेंगे -
१. शायद ऐसे लोग मनगढ़ंत कहानियां सुना रहें होंगे ; डोक्टर परनिया ने भी इस सम्भावना पर विचार किया . इस लिए उन्होंने ऐसे व्यक्तियों से बातचीत तब की, जब वो पुनर्जीवन के बाद बात करने की स्थिति में आ गए थे . किसी व्यक्ति को अगर समय दिया जाए तभी वह कहानियां गढ़ पाता है .दूसरी बात ये थी कि उन्होंने उस व्यक्ति को अपने प्रश्नों का कारण नहीं बताया , वर्ना शोध की बात सुन कर कोई भी व्यक्ति जरूरत से ज्यादा सोच कर उत्तर देगा .
२. शायद व्यक्ति की पूर्ण रूप से मृत्यु नहीं होती होगी . इस सम्भावना को भी शोध में शामिल किया गया . चिकित्सा विज्ञान में मृत्यु की परिभाषा के सारे लक्षण पाए जाने वाले लोगों को ही इस शोध का विषय बनाया गया .
३. शायद परीक्षित लोग किसी धर्म विशेष के लोग रहे होंगे, जिन्हें बचपन से मृत्यु के बाद होने वाली संभावनाओं को उनके विवरण के अनुसार बताया गया होगा ; वही बातें उनके अवचेतन मन में बैठी होंगी . डॉक्टर परनिया ने इस बात को भी ख़ारिज कर दिया क्योंकि उनके शोध परीक्षण में शामिल लोग विभिन्न धर्मों के थे , बल्कि कुछ तो बिलकुल नास्तिक ही थे .
डॉक्टर परनिया की एक पुस्तक ' What Happens When We Die' ( क्या होता है जब हम मरते हैं !) , में उन्होंने अपने शोध का पूरा निचोड़ लिखा है . मैंने उनकी किताब को पढ़ा है . उनसे पहले भी और कई डॉक्टरों ने इस विषय पर काम किया है .नब्बे के दशक में लन्दन के किंग्स कोलेज हॉस्पिटल के डॉक्टर पीटर फेन्विक ने NDE पर अपना शोध किया ; उन्होंने ३००० लोगों में से ३०० ऐसे लोग छांटे जो पूरी तरह इस शोध के सिद्धांतों के उपयुक्त थे . उनका शोध प्रबंध छपा एक पुस्तक के रूप में जिसका नाम था - The Truth In The Light ( प्रकाश का सच ). इसके पहले सत्तर के दशक के मध्य में एक अमेरिकन डॉक्टर रे मूडी ने १५० पुनर्जीवन प्राप्त व्यक्तियों पर अपना शोध किया , जो उनकी पुस्तक Life After Life (जीवन के बाद जीवन ) में प्रकाशित हुआ . इनके अलावा और बहुत सारे सुप्रसिद्ध डॉक्टर इस विषय पर काम कर चुके थे . डॉक्टर परनिया ने पिछले सभी शोधों में संभावित गलतियों को सुधार कर के अपना शोध शुरू किया था . जिस शोध में विश्व के बड़े बड़े डॉक्टर उनसे मिलकर काम कर रहे थे , जिसके लिए अमरीका और इंग्लैण्ड के बड़े बड़े हस्पतालों ने उनकी मदद की , उस शोध का उद्देश्य विश्व को मूर्ख बनाना नहीं हो सकता .
जब मैं डोक्टर परनिया की शोध को वैदिक धर्म की कसौटी पर तौलता हूँ तो मुझे कुछ ऐसे निष्कर्ष मिलते हैं -
१. भौतिक शरीर से अलग जीवात्मा की सत्ता का होना इस शोध से सिद्ध होता है .
२. जिस प्रकार जीवात्मा अपने कर्म फल के अनुसार किसी शरीर में जन्म ले सकती है ; उसी तरह जीवात्मा अपने किसी अपूर्ण कार्य की सम्पूर्ति के लिए ईश्वर द्वारा पुनः उसी शरीर में भी भेजी जा सकती है .
३. जीवात्मा अपनी मुक्त अवस्था में बिना किसी कष्ट के बहुत ही आनंद के भाव में रहता है .संभवतः यह स्थिति मोक्ष की स्थिति का ही एक सूक्ष्म रूप है .
यह विषय वैदिक शोध का भी है . इस शोध की सच्चाई में जाने के लिए भारत के ह्रदय
रोग तथा अन्य विशेषज्ञों को अपनी स्वतंत्र शोध करनी चाहिए . इस शोध के लिए व्यक्ति
उनके दैनिक जीवन में आने वाले मरीजों में से ही लोग होते हैं . शोध का माध्यम उन
लोगों से बातचीत ही है . मैं आशा करता हूँ कि वैदिक दृष्टिकोण डॉक्टर परनिया की शोध पर गंभीरता से अध्ययन करेगा .
किसी भी वस्तु के बारे मे विस्तृत ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं । इसकी तीन मुख्य शाखाएँ हैं : भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान।
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